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ग़ज़ल
एक सन्नाटा है फिर भी हर तरफ़ इक शोर है
कितने चेहरे आँख में फैले हैं आवाज़ों के साथ
इफ़्तिख़ार नसीम
ग़ज़ल
आँखों के कश्कोल शिकस्ता हो जाएँगे शाम को
दिन भर चेहरे जम्अ' किए हैं खो जाएँगे शाम को
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
सोते सोते चौंक पड़े हम ख़्वाब में हम ने क्या देखा
जो ख़ुद हम को ढूँड रहा हो ऐसा इक रस्ता देखा
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
आस के रंगीं पत्थर कब तक ग़ारों में लुढ़काओगे
शाम ढले इन कोहसारों में अपना खोज न पाओगे
नूर बिजनौरी
ग़ज़ल
तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे
जिस दिन तुम आँखें खोलोगे दुनिया को जब देखोगे
ग़ज़नफ़र
ग़ज़ल
मेरा मक़्सूद-ए-नज़र लौह-ए-मुक़द्दर में नहीं
मैं वो मोती ढूँढता हूँ जो समुंदर में नहीं
ताहिर तिलहरी
ग़ज़ल
शब सामने खड़ी है उजालों का क़द बढ़ा
दुश्मन बढ़ें तो चाहने वालों का क़द बढ़ा